Friday, February 21, 2020

महाकाल ने खोला महाशिवरात्रि पर 117 वर्षों बाद दुर्लभ संयोग का भेद

इस बार महाशिवरात्रि के पर्व पर 117 साल बाद ग्रहों का दुर्लभ संयोग बन रहा है।

भगवान शिव की आराधना का महापर्व महाशिवरात्रि 21 फरवरी दिन शुक्रवार को है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ही महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। हालांकि प्रत्येक मास की चतुर्दशी तिथि को मासिक ​शिवरात्रि मनाई जाती है। इस वर्ष महा​शिवरात्रि के दिन अद्भुत संयोग बन रहा है, ​जो भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना के लिए बहुत ही उत्तम है। 
महाशिवरात्रि पूजन मुहूर्त
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 21 फरवरी दिन शुक्रवार को शाम 05 बजकर 20 मिनट से हो रहा है, जो 22 फरवरी दिन शनिवार को शाम 07 बजकर 02 मिनट तक रहेगा।
शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि व्रत अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी तिथि में ही करना चाहिए, इसलिए इस वर्ष महाशिवरात्रि 21 फरवरी को मनाई जाएगी। आप सभी को व्रत 21 को ही रखना चाहिए।
निशिता काल पूजा समय
निशिता काल का अ​र्थ है कि वह समय जब भगवान शिव लिंग स्वरुप में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इस समय में भी आप भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं। 21 फरवरी की देर रात्रि 12 बजकर 9 मिनट से देर रात 01 बजे तक।
महाशिवरात्रि पारण समय
महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले लोगों को 22 फरवरी दिन शनिवार को पारण के साथ व्रत खोलना चाहिए। महाशिवरात्रि व्रत के पारण का समय 22 फरवरी को सुबह 06 बजकर 54 मिनट से दोपहर 03 बजकर 25 मिनट तक है। आप 06 बजकर 54 मिनट के बाद कभी भी पारण कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि पर बना दुर्लभ संयोग
इस बार महाशिवरात्रि पर अद्भुत संयोग बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बना हुआ है। सर्वार्थ सिद्धि योग 21 फरवरी को सुबह 09 बजकर 14 मिनट से बन रहा है, जो 22 फरवरी को सुबह 06 बजकर 54 मिनट तक है। वहीं, ज्योतिष के अनुसार, इस बार शिवरात्रि पर शुक्र अपनी उच्च रा​शि मीन में होगा और शनि मकर में। यह एक दुर्लभ योग है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा उत्तम मानी गई है।
इस बार महाशिवरात्रि पर मणिकांचन योग बना है। इस बार श्रवण नक्षत्र, शुक्रवार दिन और सायंकाल में चतुदर्शी के संयोग से मणिकांचन योग बन रहा है। जब भगवान शिव का माता पार्वती से विवाह हुआ था तो उस दिन भी श्रवण नक्षत्र, शुक्रवार दिन और सायंकाल में चतुदर्शी का संयोग बना था। कई वर्षों के बाद ऐसा संयोग आया है कि महाशिवरात्रि पर यह अद्भुत मणिकांचन योग बना है।

नोट:- दी गई जानकारी विभिन्न ज्योतिषाचार्यों की गड़नानुसार है, जानकारी में यदि कोई त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं।

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